शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

वैभव लक्ष्मी व्रत करने की विधि


वैभव लक्ष्मी व्रत करने की विधि

1. यह व्रत सौभाग्यशाली स्त्रियां करें तो उनका अति उत्तम फल मिलता है, पर घर में यदि सौभाग्यशाली स्त्रियां न हों तो कोई भी स्त्री एवं कुमारिका भी यह व्रत कर सकती है।

2. स्त्री के बदले पुरुष भी यह व्रत करें तो उसे भी उत्तम फल अवश्य मिलता है।

3. यह व्रत पूरी श्रद्धा और पवित्र भाव से करना चाहिए। खिन्न होकर या बिना भाव से यह व्रत नहीं करना चाहिए।

4. यह व्रत शुक्रवार को किया जाता है। व्रत शुरु करते वक्त 11 या 21 शुक्रवार की मन्नत रखनी पड़ती है और बताई गई शास्त्रीय विधि अनुसार ही व्रत करना चाहिए। मन्नत के शुक्रवार पूरे होने पर विधिपूर्वक और बताई गई शास्त्रीय रीति के अनुसार उद्यापन करना चाहिए। यह विधि सरल है। किन्तु शास्त्रीय विधि अनुसार व्रत न करने पर व्रत का जरा भी फल नहीं मिलता है।

5. एक बार व्रत पूरा करने के पश्चात फिर मन्नत कर सकते हैं और फिर से व्रत कर सकते हैं।

6. माता लक्ष्मी देवी के अनेक स्वरूप हैं। उनमें उनका ‘धनलक्ष्मी’ स्वरूप ही ‘वैभवलक्ष्मी’ है और माता लक्ष्मी को श्रीयंत्र अति प्रिय है। व्रत करते समय माता लक्ष्मी के विविध स्वरूप यथा श्रीगजलक्ष्मी, श्री अधिलक्ष्मी, श्री विजयलक्ष्मी, श्री ऐश्वर्यलक्ष्मी, श्री वीरलक्ष्मी, श्री धान्यलक्ष्मी एवं श्री संतानलक्ष्मी तथा श्रीयंत्र को प्रणाम करना चाहिए।

7. व्रत के दिन सुबह से ही ‘जय माँ लक्ष्मी’, ‘जय माँ लक्ष्मी’ का रटन मन ही मन करना चाहिए और माँ का पूरे भाव से स्मरण करना चाहिए।

8. शुक्रवार के दिन यदि आप प्रवास या यात्रा पर गये हों तो वह शुक्रवार छोड़कर उनके बाद के शुक्रवार को व्रत करना चाहिए अर्थात् व्रत अपने ही घर में करना चाहिए। कुल मिलाकर जितने शुक्रवार की मन्नत ली हो, उतने शुक्रवार पूरे करने चाहिए।

9. घर में सोना न हो तो चाँदी की चीज पूजा में रखनी चाहिए। अगर वह भी न हो तो रोकड़ रुपया रखना चाहिए।

10. व्रत पूरा होने पर कम से कम सात स्त्रियों को या आपकी इच्छा अनुसार जैसे 11, 21, 51 या 101 स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की पुस्तक कुमकुम का तिलक करके भेंट के रूप में देनी चाहिए। जितनी ज्यादा पुस्तक आप देंगे उतनी माँ लक्ष्मी की ज्यादा कृपा होगी और माँ लक्ष्मी जी के इस अद्भुत व्रत का ज्यादा प्रचार होगा।

11. व्रत के शुक्रवार को स्त्री रजस्वला हो या सूतकी हो तो वह शुक्रवार छोड़ देना चाहिए और बाद के शुक्रवार से व्रत शुरु करना चाहिए। पर जितने शुक्रवार की मन्नत मानी हो, उतने शुक्रवार पूरे करने चाहिए।

12. व्रत की विधि शुरु करते वक्त ‘लक्ष्मी स्तवन’ का एक बार पाठ करना चाहिए। लक्ष्मी स्तवन इस प्रकार है-

या रक्ताम्बुजवासिनी विलसिनी चण्डांशु तेजस्विनीं।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी।।
या   रत्नाकरमन्थनात्प्रगटितां विष्णोस्वया गेहिनी।
सा   मां   पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती।।

अर्थात् - जो लाल कमल में रहती है, जो अपूर्व कांतिवाली हैं, जो असह्य तेजवाली हैं, जो पूर्णरूप से लाल हैं, जिसने रक्तरूप वस्त्र पहने हैं, जे भगवान विष्णु को अतिप्रिय हैं, जो लक्ष्मी मन को आनन्द देती हैं, जो समुद्रमंथन से प्रकट हुई है, जो विष्णु भगवान की पत्नी हैं, जो कमल से जन्मी हैं और जो अतिशय पूज्य है, वैसी हे लक्ष्मी देवी! आप मेरी रक्षा करें।

13. व्रत के दिन हो सके तो उपवास करना चाहिए और शा को व्रत की विधि करके माँ का प्रसाद लेकर व्रत करना चाहिए। अगर न हो सके तो फलाहार या एक बार भोजन कर के शुक्रवार का व्रत रखना चाहिए। अगर व्रतधारी का शरीर बहुत कमजोर हो तो ही दो बार भोजन ले सकते हैं। सबसे महत्व की बात यही है कि व्रतधारी माँ लक्ष्मी जी पर पूरी-पूरी श्रद्धा और भावना रखे और ‘मेरी मनोकामना माँ पूरी करेंगी ही’, ऐसा दृढ़ विश्वास रखकर व्रत करे।

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