शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

क्या अंतर है शनिदेव की साढ़ेसाती और शनि ढैया में, शनि देव के प्रकोप से मुक्ति के लिए क्या करे उपाय

 शनि ढैया और साढ़साती में ये करे उपाय









शनि की साढ़े साती और ढैय्या के प्रभाव से व्यक्ति को आर्थिक और शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन प्रभावों को कम करने के जीव-जंतुओं की सेवा और दान करना चाहिए साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ करना बेहद प्रभावशाली उपाय है। 


शनिदेव को कर्मफल दाता माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह है। शनि एक राशि में लगभग ढाई साल तक रहते हैं, और इसके कारण उन्हें एक राशि चक्र पूरा करने में करीब 30 वर्ष का समय लगता है। जब भी लोग शनि की साढ़े साती और ढैय्या के बारे में सुनते हैं, वे अक्सर चिंता में पड़ जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि की साढ़े साती और ढैय्या का प्रभाव आर्थिक और शारीरिक कष्टों को बढ़ाने वाला माना जाता है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि जिन राशियों में शनि विराजमान होते हैं, वे हमेशा दुख ही देते हैं। कई बार शनि का प्रभाव हानि के साथ-साथ लाभ भी प्रदान कर सकता है। आइए, हम विस्तार से समझते हैं कि शनि की साढ़े साती और ढैय्या क्या हैं और इनमें क्या अंतर है।


शनि की साढ़े साती क्या होती है?

शनि की साढ़े साती उस अवधि को कहते हैं जब शनि ग्रह आपकी जन्म राशि से बारहवें, पहले और दूसरे भाव में गोचर करता है। यह चरण लगभग 7.5 वर्षों तक चलता है और जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाता है। इस दौरान व्यक्ति को करियर में उतार-चढ़ाव, आर्थिक समस्याएं और स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। कई बार ये बदलाव चुनौतीपूर्ण होते हैं, लेकिन आत्मसंयम और धैर्य से इनका सामना किया जा सकता है।


शनि की साढ़े साती के प्रभाव से मुक्ति के उपाय

  1. सरसों के तेल का दान – शनिवार के दिन सरसों के तेल में अपना चेहरा देखकर उसे किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दान करें। यदि दान लेने वाला न मिले तो तेल को पीपल के वृक्ष के नीचे रख दें।
  2. पीपल की पूजा – हर शनिवार पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीया जलाकर शनिदेव से अपने दोषों के लिए क्षमा मांगें।
  3. हनुमान जी की आराधना – हनुमान जी की पूजा करें और नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करें।
  4. शनि देव की पूजा – शनिवार के दिन शनि देव की विशेष पूजा करें और काले तिल व काले वस्त्र दान करें।

शनि की ढैय्या क्या होती है?

जब शनि जन्म कुंडली के चौथे या आठवें भाव में स्थित होता है, तब इसे शनि की ढैय्या कहा जाता है। यह अवधि लगभग ढाई साल तक रहती है और व्यक्ति के जीवन में मानसिक तनाव, आर्थिक कठिनाइयाँ और सेहत से जुड़ी परेशानियाँ ला सकती है। ढैय्या को शनि का अशुभ प्रभाव माना जाता है, लेकिन यह साढ़ेसाती की तुलना में कम कष्टकारी होती है।

शनि की ढैय्या से मुक्ति के उपाय

  1. हनुमान चालीसा का पाठ – नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करने से शनि के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं।
  2. भगवान शिव की पूजा – शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करें।
  3. पशु-पक्षियों की सेवा – गाय, कुत्ते, कौवे आदि को भोजन कराने से शनि के कष्टों से राहत मिलती है।
  4. गरीबों को अन्नदान – ज़रूरतमंदों को भोजन दान करना शनि दोष को शांत करने का प्रभावी उपाय है।

शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या में अंतर

विशेषता साढ़ेसाती ढैय्या
अवधि लगभग 7.5 साल लगभग 2.5 साल
भाव 12वें, 1वें और 2वें भाव में 4वें या 8वें भाव में
प्रभाव अधिक गहरा और दीर्घकालिक अपेक्षाकृत हल्का और अल्पकालिक
कष्ट करियर, सेहत और आर्थिक समस्याएँ अधिक हो सकती हैं मुख्य रूप से मानसिक तनाव और आर्थिक कठिनाइयाँ

साढ़ेसाती और ढैय्या, दोनों ही जीवन में चुनौतियाँ लाती हैं, लेकिन सही उपाय करने से इनका प्रभाव कम किया जा सकता है।










बुधवार, 19 फ़रवरी 2025

कृतिका लोक के रहस्य और उससे जुड़ी पौराणिक कथा

 कहां है कृतिका लोक, क्या है इससे जुड़ी कथा।






"कृतीका लोक" उस स्थान को कहा जाता है, जहाँ भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का पालन-पोषण हुआ था। धार्मिक और पौराणिक संदर्भों में, कृतीका लोक को विशेष स्थान प्राप्त है, खासकर हिन्दू धर्म की कथाओं और पुराणों में।

यह स्थान कृतीका ग्रह या कृतीका नक्षत्र से जुड़ा हुआ है, जो भारतीय ज्योतिषशास्त्र में एक प्रमुख नक्षत्र है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का पालन- पोषण कृतीका देवियों ने किया था। यह देवी एक प्रकार के नक्षत्रों के रूप में मानी जाती हैं, और पौराणिक कथा में इनका उल्लेख विशेष रूप से कार्तिकेय के पालनकर्ता के रूप में किया गया है।

पौराणिक कथा:

कहा जाता है कि जब भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ, तो वह एक छोटे बच्चे के रूप में थे। उनके जन्म के बाद, उनकी देखभाल और पालन-पोषण के लिए माता पार्वती ने कृतीका देवियों (जो सप्त ऋषियों की कन्याएँ मानी जाती हैं और जो कृतीका नक्षत्र में स्थित हैं) को उनकी देखभाल के लिए नियुक्त किया। ये देवियाँ कार्तिकेय को अपनी मां की तरह पालन करती हैं और उन्हें वीर, बलशाली और बुद्धिमान बनाती हैं।

कृतीका लोक की महत्वता:

  1. कृतीका नक्षत्र - यह नक्षत्र भारतीय ज्योतिष में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे युद्ध और साहस का प्रतीक माना जाता है। कार्तिकेय का संबंध इस नक्षत्र से जुड़ा है, जिससे यह स्थान और भी पवित्र हो जाता है।

  2. कार्तिकेय का वीरता से जुड़ा संबंध - कार्तिकेय के युद्ध कौशल और वीरता की कथाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। वह देवी महाशक्ति की रक्षा और असुरों के संहार के लिए प्रसिद्ध हैं।

  3. कृतीका लोक का धार्मिक दृष्टिकोण - इस लोक का धार्मिक दृष्टिकोण विशेष रूप से कार्तिकेय की पूजा और उनके जीवन से जुड़ी कथाओं से है। कार्तिकेय को दक्षिण भारत में विशेष रूप से पूजा जाता है और उनके कई मंदिर हैं, जैसे कि तमिलनाडु के कांची, तिरुतनी, और पचचैमल जैसे स्थानों पर।

  4. सप्तऋषि और कृतीका - पौराणिक कथाओं में सप्तऋषियों की बहुत महत्वता है, और उनके साथ जुड़ा हुआ कृतीका नक्षत्र भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

कृतीका लोक को आमतौर पर दक्षिण भारत में ही संदर्भित किया जाता है, जहां कार्तिकेय की पूजा की जाती है और साथ ही उनके जीवन के महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख होता है।