मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

श्री कृष्ण की सोलह कलाएं


सोलह कलाएँ

कला को अवतारी शक्ति की एक इकाई मानें तो श्रीकृष्ण सोलह कला अवतार माने गए हैं। सोलह कलाओं से युक्त अवतार पूर्ण माना जाता हैं, अवतारों में श्रीकृष्ण में ही यह सभी कलाएं प्रकट हुई थी। इन कलाओं के नाम निम्नलिखित हैं।

१. श्री धन संपदा : प्रथम कला धन संपदा नाम से जानी जाती हैं है। इस कला से युक्त व्यक्ति के पास अपार धन होता हैं और वह आत्मिक रूप से भी धनवान हो। जिसके घर से कोई भी खाली हाथ वापस नहीं जाता, उस शक्ति से युक्त कला को प्रथम कला! श्री-धन संपदा के नाम से जाना जाता हैं।

२. भू अचल संपत्ति : वह व्यक्ति जो पृथ्वी के राज भोगने की क्षमता रखता है; पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग पर जिसका अधिकार है तथा उस क्षेत्र में रहने वाले जिसकी आज्ञाओं का सहर्ष पालन करते हैं वह कला! भू अचल संपत्ति कहलाती है।

३. कीर्ति यश प्रसिद्धि : जिस व्यक्ति की मान-सम्मान और यश की कीर्ति चारों और फैली हुई हो, लोग जिसके प्रति स्वतः ही श्रद्धा और विश्वास रखते हैं, वह कीर्ति यश प्रसिद्धि कला से संपन्न माने जाते है।

४. इला वाणी की सम्मोहकता : इस कला से संपन्न व्यक्ति मोहक वाणी युक्त होता हैं; व्यक्ति की वाणी सुनकर क्रोधी व्यक्ति भी अपना सुध-बुध खोकर शांत हो जाता है तथा मन में भक्ति की भावना भर उठती हैं।

५. लीला आनंद उत्सव : इस कला से युक्त व्यक्त अपने जीवन की लीलाओं को रोचक और मोहक बनाने में सक्षम होता है। जिनकी लीला कथाओं को सुनकर कामी व्यक्ति भी भावुक और विरक्त होने लगता है।

६. कांति सौदर्य और आभा : ऐसे व्यक्ति जिनके रूप को देखकर मन स्वतः ही आकर्षित होकर प्रसन्न हो जाता है, वे इस कला से युक्त होते हैं। जिसके मुखमंडल को देखकर बार-बार छवि निहारने का मन करता है वह कांति सौदर्य और आभा कला से संपन्न होता है।

७. विद्या मेधा बुद्धि : सभी प्रकार के विद्याओं में निपुण व्यक्ति जैसे! वेद-वेदांग के साथ युद्ध और संगीत कला इत्यादि में पारंगत व्यक्ति इस काला के अंतर्गत आते हैं।

८. विमला पारदर्शिता : जिसके मन में किसी प्रकार का छल-कपट नहीं होता वह विमला पारदर्शिता कला से युक्त होता हैं; इनके लिए सभी एक समान होते हैं, न तो कोई बड़ा है और न छोटा।

९. उत्कर्षिणि प्रेरणा और नियोजन : युद्ध तथा सामान्य जीवन में जी प्रेरणा दायक तथा योजना बद्ध तरीके से कार्य करता हैं वह इस कला से निपुण होता हैं। व्यक्ति में इतनी शक्ति व्याप्त होती हैं कि लोग उसकी बातों से प्रेरणा लेकर लक्ष्य भेदन कर सकें।

१०. ज्ञान नीर क्षीर विवेक : अपने विवेक का परिचय देते हुए समाज को नई दिशा प्रदान करने से युक्त गुण ज्ञान नीर क्षीर विवेक नाम से जाना जाता हैं।

११. क्रिया कर्मण्यता : जिनकी इच्छा मात्र से संसार का हर कार्य हो सकता है तथा व्यक्ति सामान्य मनुष्य की तरह कर्म करता हैं और लोगों को कर्म की प्रेरणा देता हैं।

१२. योग चित्तलय : जिनका मन केन्द्रित है, जिन्होंने अपने मन को आत्मा में लीन कर लिया है वह योग चित्तलय कला से संपन्न होते हैं; मृत व्यक्ति को भी पुनर्जीवित करने की क्षमता रखते हैं।

१३. प्रहवि अत्यंतिक विनय : इसका अर्थ विनय है, मनुष्य जगत का स्वामी ही क्यों न हो, उसमें कर्ता का अहंकार नहीं होता है।

१४. सत्य यथार्य : व्यक्ति कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं रखता और धर्म की रक्षा के लिए सत्य को परिभाषित करना भी जनता हैं यह कला सत्य यथार्य के नाम से जानी जाती हैं।

१५. इसना आधिपत्य : व्यक्ति में वह गुण सर्वदा ही व्याप्त रहती हैं, जिससे वह लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित कर पाता है, आवश्यकता पड़ने पर लोगों को अपना प्रभाव की अनुभूति करता है।

१६. अनुग्रह उपकार : निस्वार्थ भावना से लोगों का उपकार करना अनुग्रह उपकार है।

शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

क्या अंतर है शनिदेव की साढ़ेसाती और शनि ढैया में, शनि देव के प्रकोप से मुक्ति के लिए क्या करे उपाय

 शनि ढैया और साढ़साती में ये करे उपाय









शनि की साढ़े साती और ढैय्या के प्रभाव से व्यक्ति को आर्थिक और शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन प्रभावों को कम करने के जीव-जंतुओं की सेवा और दान करना चाहिए साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ करना बेहद प्रभावशाली उपाय है। 


शनिदेव को कर्मफल दाता माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह है। शनि एक राशि में लगभग ढाई साल तक रहते हैं, और इसके कारण उन्हें एक राशि चक्र पूरा करने में करीब 30 वर्ष का समय लगता है। जब भी लोग शनि की साढ़े साती और ढैय्या के बारे में सुनते हैं, वे अक्सर चिंता में पड़ जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि की साढ़े साती और ढैय्या का प्रभाव आर्थिक और शारीरिक कष्टों को बढ़ाने वाला माना जाता है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि जिन राशियों में शनि विराजमान होते हैं, वे हमेशा दुख ही देते हैं। कई बार शनि का प्रभाव हानि के साथ-साथ लाभ भी प्रदान कर सकता है। आइए, हम विस्तार से समझते हैं कि शनि की साढ़े साती और ढैय्या क्या हैं और इनमें क्या अंतर है।


शनि की साढ़े साती क्या होती है?

शनि की साढ़े साती उस अवधि को कहते हैं जब शनि ग्रह आपकी जन्म राशि से बारहवें, पहले और दूसरे भाव में गोचर करता है। यह चरण लगभग 7.5 वर्षों तक चलता है और जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाता है। इस दौरान व्यक्ति को करियर में उतार-चढ़ाव, आर्थिक समस्याएं और स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। कई बार ये बदलाव चुनौतीपूर्ण होते हैं, लेकिन आत्मसंयम और धैर्य से इनका सामना किया जा सकता है।


शनि की साढ़े साती के प्रभाव से मुक्ति के उपाय

  1. सरसों के तेल का दान – शनिवार के दिन सरसों के तेल में अपना चेहरा देखकर उसे किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दान करें। यदि दान लेने वाला न मिले तो तेल को पीपल के वृक्ष के नीचे रख दें।
  2. पीपल की पूजा – हर शनिवार पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीया जलाकर शनिदेव से अपने दोषों के लिए क्षमा मांगें।
  3. हनुमान जी की आराधना – हनुमान जी की पूजा करें और नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करें।
  4. शनि देव की पूजा – शनिवार के दिन शनि देव की विशेष पूजा करें और काले तिल व काले वस्त्र दान करें।

शनि की ढैय्या क्या होती है?

जब शनि जन्म कुंडली के चौथे या आठवें भाव में स्थित होता है, तब इसे शनि की ढैय्या कहा जाता है। यह अवधि लगभग ढाई साल तक रहती है और व्यक्ति के जीवन में मानसिक तनाव, आर्थिक कठिनाइयाँ और सेहत से जुड़ी परेशानियाँ ला सकती है। ढैय्या को शनि का अशुभ प्रभाव माना जाता है, लेकिन यह साढ़ेसाती की तुलना में कम कष्टकारी होती है।

शनि की ढैय्या से मुक्ति के उपाय

  1. हनुमान चालीसा का पाठ – नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करने से शनि के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं।
  2. भगवान शिव की पूजा – शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करें।
  3. पशु-पक्षियों की सेवा – गाय, कुत्ते, कौवे आदि को भोजन कराने से शनि के कष्टों से राहत मिलती है।
  4. गरीबों को अन्नदान – ज़रूरतमंदों को भोजन दान करना शनि दोष को शांत करने का प्रभावी उपाय है।

शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या में अंतर

विशेषता साढ़ेसाती ढैय्या
अवधि लगभग 7.5 साल लगभग 2.5 साल
भाव 12वें, 1वें और 2वें भाव में 4वें या 8वें भाव में
प्रभाव अधिक गहरा और दीर्घकालिक अपेक्षाकृत हल्का और अल्पकालिक
कष्ट करियर, सेहत और आर्थिक समस्याएँ अधिक हो सकती हैं मुख्य रूप से मानसिक तनाव और आर्थिक कठिनाइयाँ

साढ़ेसाती और ढैय्या, दोनों ही जीवन में चुनौतियाँ लाती हैं, लेकिन सही उपाय करने से इनका प्रभाव कम किया जा सकता है।